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सांविधानिक विधि
पूर्व-निर्णय या नजीर
« »22-Aug-2023
एक्सपीरियन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम हिमांशु दीवान और सोनाली दीवान "बिना किसी कारण के किसी अपील को खारिज करने वाले आदेश को मिसाल नहीं माना जा सकता।" न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बेला एम. त्रिवेदी और उज्ज्वल भुइयाँ स्रोत- उच्चतम न्यायालय |
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने एक्सपीरियन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम हिमांशु दीवान और सोनाली दीवान के मामले में कहा कि बिना कोई कारण दर्ज किये किसी अपील को खारिज करने के आदेश को बाध्यकारी पूर्व-निर्णय या नजीर (precedent) के रूप में नहीं माना जा सकता है।
पृष्ठभूमि
- इस मामले में अपीलकर्ता ने गुड़गाँव, हरियाणा में स्थित "विंडचांट्स" नामक एक आवास परियोजना में अपार्टमेंट का विकास और निर्माण किया था।
- प्रतिवादी अपने अपार्टमेंट के आवंटी या उसके बाद के क्रेता/विक्रेता हैं।
- फरवरी 2022 में, प्रतिवादियों ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष एक शिकायत दर्ज की, जिसमें बढ़े हुए बिक्री क्षेत्र के लिये उनके द्वारा भुगतान की गई राशि की वापसी की मांग की गई।
- राष्ट्रीय आयोग ने पवन गुप्ता बनाम एक्सपीरियन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड (2018) के मामले में दिये गए निर्णय पर भरोसा करते हुए अपीलकर्ता को अतिरिक्त बिक्री क्षेत्रों के लिये एकत्र की गई राशि वापस करने का निर्देश दिया।
- इसके बाद अपीलकर्ताओं द्वारा शीर्ष न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई।
- राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित फैसले को शीर्ष न्यायालय ने रद्द कर दिया था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
- न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बेला एम. त्रिवेदी और उज्जल भुइयाँ की पीठ ने कहा कि पूर्व-निर्णय या नजीर (precedent) किसी अलग मामले में समान स्थितियों को बांधने का काम करती है और कहा कि पवन गुप्ता बनाम एक्सपीरियन डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड (2018) के मामले को एक पूर्व-निर्णय या नजीर (precedent) के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता है।
- न्यायालय ने कहा कि बिना किसी कारण के दर्ज की गई किसी अपील को खारिज करने के उसके आदेश को बाध्यकारी पूर्व-निर्णय या नजीर (precedent) नहीं माना जा सकता और ऐसे पूर्व-निर्णय तथ्यों का फैसला नहीं कर सकतीं।
- न्यायालय ने आगे कहा कि भारत के संविधान (COI) के अनुच्छेद 141 के संदर्भ में, बाध्यकारी मिसालों के कानून का एक बड़ा अर्थ है क्योंकि यह निर्णय से निकलने वाले कानून के सिद्धांतों को तय करता है, जिन्हें बाद में बाध्यकारी पूर्व-निर्णयों के रूप में माना जाता है।
कानूनी प्रावधान
पूर्व-निर्णय का सिद्धांत
- इसे ब्रिटिश न्यायशास्त्र से भारतीय संविधान में अपनाया गया है।
- अनुच्छेद 141 पूर्व-निर्णय के सिद्धांत से संबंधित है।
- अनुच्छेद 141 में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के क्षेत्र के भीतर सभी अदालतों पर बाध्यकारी होगा।
- पूर्व-निर्णय का सिद्धांत न्यायालय के पिछले निर्णयों को उसकी सुस्पष्ट सीमाओं के भीतर पालन करने का सिद्धांत है।
- निर्णय का वह भाग जो निर्णय के निर्णय का औचित्य' (Ratio decidendi) का गठन करता है, बाध्यकारी प्रभाव रखता है, न कि निर्णय का वह भाग जो निर्णय की इतरोक्ति (obiter dictum) का गठन करता है।
- निर्णय के तर्क को ही निर्णय का औचित्य' (Ratio decidendi) कहा जाता है। कानून का ऐसा सिद्धांत न केवल उस विशेष मामले पर लागू होता है, बल्कि उसके बाद के सभी समान मामलों पर भी लागू होता है।
- ओबिटर डिक्टम एक विशेष मामले में मात्र न्यायिक राय है और इसका कोई सामान्य अनुप्रयोग नहीं है।
- बीर सिंह बनाम भारत संघ (2019) में, यह माना गया कि किसी निर्णयित मामले का निर्णय एक मिसाल है और कानून का एक समान मुद्दा उठने पर सभी संभावित आकस्मिकताओं के लिये एक बाध्यकारी मिसाल के रूप में कार्य करेगा।
पूर्व-निर्णय के सिद्धांत के संबंध में सामान्य सिद्धांत
- ये निर्णय निचली अदालतों पर लागू होते हैं और वे उनका पालन करने के लिये बाध्य होते हैं।
- उच्चतम न्यायालय अपने स्वयं के निर्णयों से बाध्य नहीं है और यदि आवश्यक हो तो उन्हें उनसे अलग होने की स्वतंत्रता है।
- एक उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय दूसरे उच्च न्यायालय पर बाध्यकारी मिसाल नहीं बनता है।
- उच्च न्यायालय या अन्य अधीनस्थ न्यायालयों के पास उच्चतम न्यायालय के फैसलों को खारिज करने की शक्ति नहीं है।
- प्रक्रियात्मक अनियमितता और सारहीनता किसी निर्णय की बाध्यकारी प्रकृति को अमान्य नहीं करती है।
- उच्चतम न्यायालय के एकपक्षीय निर्णय भी प्रकृति में बाध्यकारी होते हैं और इन्हें मिसाल के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
- कम गणपूर्ति वाली पीठ बड़ी गणपूर्ति वाली पीठ के निर्णयों से असहमत नहीं हो सकती है।
- प्रक्रियात्मक अनियमितता और सारहीनता किसी निर्णय की बाध्यकारी प्रकृति को अमान्य नहीं करती है।